Sunday, March 28, 2010

दुनिया


आकाश मैं हाथ उठाए
पाँव से पाताल दबाए
विकास की सम्पूर्ण भीड़
विनाश के द्वार पर खड़ी है
सारा जग है , लेकिन
किसे पड़ी है


7 comments:

  1. एक साथ कई ज्वलंत
    प्रश्न उठाती रचना
    बधाई

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  2. बहुत अच्छी, सशक्त रचना है ये!
    याद रह जाती है।

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  3. आदरणीय झनकार दादा जी वास्तव में इस कालजयी रचना के लिए हमारे पास शब्द नहीं हैं फिर भी आज के पर्यावरण विदों और वैज्ञनिकों
    को नया अविष्कार करने से पहले इन पंक्तियों को अवश्य पढना चाहिए चिंतन परक रचना के लिए साधुवाद

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