Sunday, March 21, 2010



आदमी

आदमी ! जीवन भर शेर की तरह गुर्राया
कभी, सियार की तरह हुवाया
लेकिन, जब खुद चोट खाई
तो, आदमी आदमी की तरह चिल्लाया

3 comments:

  1. आदरणीय झनकार जी आपकी पंक्तियाँ मनुष्यता को नए सिरे से परिभाषित करती हैं बहुत अच्छा साधुवाद !

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  2. मानव स्वभाव का
    सच बखानती रचना

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  3. बहुत बढ़िया। ये चित्र कहाँ से लाते हैं आप?
    भाव और शब्द तो खैर हैं ही मौलिक और उत्तम।

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